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Showing posts from 2019

खामोशी

खामोशी गर तेरी भी इक ज़ुबान होती, बातें मेरी भी कोई सुन रहा होता। ©noopurpathak

आत्मसमर्पण

मेरी हताशा ने मेरी उम्मीदों को, मेरे दर्द ने मेरी मुस्कुराहटों को, मेरे क्रोध ने मेरे धैर्य को, आज आत्मसमर्पण कर दिया है। ©noopurpathak

मेरी बर्बादी की दास्तान

मेरी बर्बादी की दास्तान मत पूछो, यूँ हुअा कि; कुछ अनबन हुई, कुछ शिकवे-गिले, कुछ सपने टूटे और अपने तो कितने पीछे छूटे।  कुछ दिन कटे, कुछ रात ढ़ली, कुछ उसने कही और कहती रही। कुछ मैं गलत, कुछ वो सही, कुछ मैं रूठा और वो मानी नहीं। और यूँ मनाते मनाते मैं बर्बाद हुआ... उस तक ज़ालिम, ये ख़बर पहुँची तक नहीं। ©noopurpathak

मुझे पसंद है

किसी ने कभी पूछा नहीं, पर मुझे पसंद है; बारिश की बूंदों की खनक, सौंधी-सी मिट्टी की महक। बस की खिड़की से झाँकना, दूर उस क्षितिज को ताकना। नदी में पैर भिगोना, हर महफिल में एक कोना। यूँ बेधड़क कभी थिरकना, चिट्ठी पढ़ कर चहकना। वो पुरानी-सी मेरी डायरी, फराज़ और अॉलिया की शायरी। ©noopurpathak

बदली नहीं हूँ मैं

गर मेरी बोल-चाल, मेरे पहनावे से, तुम्हें मैं कोई और लगूँ; तो कुछ देर और ठहर जाना। मेरी बातों को मेरे गाँव तक पहुँचने में, ज्यादा वक्त नहीं लगता। मेरे कपडों से आती मिट्टी-नीम की भीनी-भीनी सुगंध, ढूँढ़ लेगी तुम तक पहुँचने का पता। क्यूँकि, बदली नहीं हूँ मैं। गर मेरे आसमान छूने के सपने से, तुम्हें मैं शहरी लगने लगूँ; तो दोबारा मेरी आँखों में झांक कर देखना। अपने गाँव की गलियों में,  नहर किनारे, बाड़ी के पास, बसने को तरसती निगाहें दिखेंगी। क्यूँकि, बदली नहीं हूँ मैं। ©noopurpathak

इस होली ऐसा करना

इस होली ऐसा करना, कि; रंग चढ़े इंसानियत का... पकवान में हो सहजता की मिठास... गले मिलो अपना-पराया भूलकर... सम हैं हम का रहे अहसास। इस होली ऐसा करना, कि; आक्रोश कम न हो वीरों की शहादत का... भूलें न हम पुरखों का इतिहास... ज़िम्मेदारी निभाऐं पर्यावरण के प्रति.. रहे सदा ये पावन पर्व सबसे खास। ©noopurpathak

अभिव्यक्ति

वक्त अच्छा या खराब नहीं होता, बदलते उसके हालात होते हैं.. आदमी भला या बुरा नहीं होता, बदलते उसके जज़्जबात होते हैं। हर कोई दिल का दर्द बयान कर सके, ये मुमकिन नहीं.. कुछ आँसू बहा कर, कुछ मुस्कान से रोते हैं। ©noopurpathak

मैं इक अनकही गज़ल हूँ

मैं वो अनकही गज़ल हूँ, जिसका मतला और मक़्ता दोनों... बस ज़हन में ही हैं।  ऐसी गज़ल, जिसका हर इक शेर, आपस में ही उलझा हुआ है। वो गज़ल, जिसके काफिये भी न मिलते हैं, हाँ... रदीफ़ों की कोई कमी न है। मैं अधूरी गज़ल हूँ, इंतजार में हूँ कि, कब वो शेर लिखा जाएगा.. जो शाहै बैत कहलाएगा। पर अभी.. मैं इक अनकही गज़ल हूँ। ©noopurpathak

मैं वो नहीं जो तुमने चाहा होगा..

  मैं  वो सब नहीं जो तुमने चाहा होगा; मैं वो हूँ, जो मैंने जिया है। मैं हुस्न नहीं,  बस परछाई-सी हूँ। मैं गीत नहीं, इक नज़्म बुदबुदाई-सी हूँ। मैं हँसी नहीं, मुसकुराहट गुनगुनाई-सी हूँ। मैं तस्वीर नहीं, यादों की सुनवाई-सी हूँ। मैं बस दिल नहीं, हर एहसास छलकाई-सी हूँ। मैं वो नहीं जो तुमने चाहा होगा.. ©noopurpathak

शहीद

आँखें नहीं, दिल भी ये रोता है... वो साहसिक परिवार, जब इक सपूत खोता है। मेरी साँसें हैं, उन बंद साँसों की बदौलत... मन कृतज्ञता से, सराबोर होता है। न शिकन, न शिकायत, वो शहीद... कितने सुकून से सोता है। ©noopurpathak