Skip to main content

Posts

Showing posts from 2018

कीरत, भुआ और खिड़की

सोफे से अचानक उतरकर, उसने अपनी कोमल उंगलियों से मेरा हाथ थामा और ले चला मुझे खिड़की के सामने रखी बेंच की ओर।अब समय हो चला था हमारा खिड़की की सलाखों के बाहर बसी दुनिया की सैर करने का। थोड़ी खुद की कोशिश और थोड़ी मेरी मदद से, कीरत बेंच पर चढ़ने का काम पूरा कर चुका था। उसके चेहरे की खुशी देखते हीबनती है। हाँलाकि यह हमारा लगभग रोज़ का नियम है, परंतु कीरत का उत्साह हर दिन मानो बढ़ता ही जाता है। उसकी चंचल ऑंखें सबसे पहले खोजती हैं, आकाश में उड़ते पंछियों को... अगर पंछियों का झुंड दिख जाए, तो आकाश में पंछी उड़तेहैं और घर की बेंच पर कीरत चहकता है। इस बीच अगर उसे सड़क पर चलते कुत्ते दिख जाऐं, तो भरसक कोशिश करेगा उन्हें अपने पास बुलाने की। तालियाँ बजाकर अपना उत्साह ज़ाहिर करेगा। उस नन्हें मन की ख़ासियत यह है कि उसे सड़क से गुज़रती साइकिल भी उतनी ही पसंद है, जितनी एक कार।वो सभी को 'बाय' कहता है...उम्मीद में की उसे जवाब मिलेगा। कभी-कभी जब उसे जवाब नहीं मिलता, तब मेरी ओर देखकर अपनी निराशा व्यक्तकरता है। पर ये निराशा बस पल भर की ह